
पाटलिपुत्रा न्यूज़ @डेस्क : मई के पहले पखवाड़े में पीएम ने 20 से अधिक इंटरव्यू दिए। सवाल उठता है कि ये ‘सशुल्क’ पीआर थे या मुफ्त प्रचार? किसी भी टीवी साक्षात्कारकर्ता ने एक बार भी राहुल गांधी का तो इंटरव्यू नहीं लिया? कुछ लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री अपने बारे में अधिक आकर्षक नजरिया प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि अगर उन्हें पद छोड़ना पड़ा तो पूरे सम्मान के साथ किनारे हो जाएं। इस धारणा को टाइम्स नाऊ को दिए उनके इंटरव्यू में और बल मिला जब उन्होंने कहा, ‘आप मानें या न मानें, चुनाव मेरे दिमाग में कहीं नहीं है।’

चौथे दौर के मतदान के बाद अमित शाह ने कहा कि उनके हिसाब से एनडीए उन 380 सीटों में से 190 सीटें जीतने की स्थिति में है जहां मतदान खत्म हो चुका है। अगले दिन उन्होंने दावा किया कि ‘मोदी जी पहले ही 270 सीटें जीत चुके हैं और बहुमत हासिल कर चुके हैं।’ उन्होंने कहा कि अब लक्ष्य ‘400 पार’ है।सीएनबीसी ने जब उनसे शेयर बाजार में गिरावट पर पूछा तो शाह ने निवेशकों को सलाह दी कि वे अभी शेयर खरीद लें क्योंकि 4 जून को बाजार में तेजी आ जाएगी। वह कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने का झांसा दे रहे हों या जीत हासिल करने के लिए पर्दे के पीछे कोई योजना बना रहे हों या फिर वह वास्तव में जीत के लिए बिल्कुल निश्चिंत हों।

किसे पता? हालांकि शाह की ‘चाणक्य’ की छवि को उनके गृह राज्य गुजरात में ही आघात पहुंचा है। 7 मई को मतदान खत्म होने के बाद से पार्टी में उथल-पुथल है। अखबारों की ऐसी सुर्खियों को नजरअंदाज करना मुश्किल है- ‘भाजपा में बवाल’। उनकी प्रतिष्ठा को इससे भी बड़ा झटका तब लगा जब वह इफको में निदेशक पद के लिए अपने उम्मीदवार को जिता नहीं सके। शाह ने खुद बागी विधायक जयेश रहादिया से बात की लेकिन रहादिया ने विद्रोह किया और शाह के उम्मीदवार बिपिन पटेल को हरा दिया।
