कैसा तूफान लाएंगे 4 जून के असली नतीजे ?…

यह उम्मीद करने के कारण हैं कि सबसे बुरा समय बीत चुका है, इस भय के भी कारण हैं कि बुरा समय आना तो अभी शेष है! आपने सुना होगा कि वे वापस आ रहे हैं, आप यह भी सुन रहे होंगे कि उनकी विदाई तय है! आपने सुना कि वे प्रचंड बहुमत के साथ लौटेंगे और आपने यह भी सुना कि नरेंद्र मोदी को एहसास हो गया है कि उनकी सरकार का अंत करीब है! आपने उनके नवीनतम स्टंट के बारे में भी सुना-देखा- कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल में 45 घंटे का (टेलीविजन चैनलों पर लाइव) ध्यान सत्र जो तीन समुद्रों के संगम पर मुख्य भूमि से एक छोटी नौका की सवारी है। यह उम्मीद करने का कारण है कि सबसे बुरा समय बीत चुका है, यह डरने का भी कारण है कि बुरा समय तो अभी आना बाकी है।

पाटलिपुत्रा न्यूज़ @ डेस्क : 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, तब बीजेपी के पास 161 सीटें थीं, यानी विश्वास मत जीतने के लिए आवश्यक बहुमत से 111 कम। वाजपेयी सरकार को सिर्फ तीन दलों- शिवसेना, हरियाणा विकास मंच और शिरोमणि अकाली दल का समर्थन हासिल था। सरकार 13 दिनों में गिर गई लेकिन वाजपेयी ने अपने ही अंदाज में कहा- “सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी।लेकिन लोकतंत्र बलशाली रहेगा।” दलगत भेद से ऊपर उठकर सभी ने इसकी तारीफ की। दूसरी बार वाजपेयी ने अप्रैल, 1999 में इस्तीफा दिया जब वह विश्वास प्रस्ताव केवल एक वोट से हार गए।

संभव है, इस बार नरेंद्र मोदी के पास अल्प बहुमत होगा। लेकिन मोदी कोई वाजपेयी तो हैं नहीं। वह संवैधानिक पहेलियों का पिटारा खोलकर, उनका हवाला देकर इस्तीफा तो नहीं देने वाले। चूंकि फैसला अब भी हमारे संदेह के दायरे वाले ईवीएम में बंद है

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